देश के विश्वविद्यालयों और कालेजों के लिए अब विदेशी शैक्षणिक संस्थानों के साथ साझेदारी आसान हो जाएगी। ये अपने छात्रों को दी जाने वाली डिग्री पर विदेशी संस्थान का नाम भी शामिल कर सकेंगे। हालांकि, इसके लिए छात्र को उस विदेशी संस्थान में कम से कम एक या दो सेमेस्टर के लिए पढ़ने भेजना जरूरी होगा। उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले छात्रों की बड़ी संख्या को देखते हुए सरकार ने यह कदम उठाया है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए विदेशी संस्थानों से साझेदारी के नियमों को काफी उदार कर दिया है। अब भारतीय संस्थान यूजीसी को ऐसी साझेदारी के लिए सीधे आवेदन कर सकेंगे। पहले इसके लिए विदेशी संस्थान को आवेदन करना होता था।
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि इससे भारतीय विश्वविद्यालयों का विदेशी शैक्षणिक संस्थानों के साथ तालमेल बढ़ेगा। साथ ही छात्रों को भी काफी लाभ होगा। उन्हें ज्यादा विकल्प मिल सकेंगे।विदेशी संस्थान के साथ मिलकर पाठ्यक्रम चलाने की शर्त यह होगी कि स्नातक पाठ्यक्रम में छात्र को कम से कम दो सेमेस्टर और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में न्यूनतम एक सेमेस्टर विदेशी संस्थान में रहकर पढ़ाई करनी होगी। पाठ्यक्रम पूरा होने पर छात्र को भारतीय संस्थान की ही उपाधि मिलेगी।
मगर उस पर विदेशी साझेदार का नाम लिखा जा सकेगा। तकनीकी रूप से इसे साझा डिग्री नहीं कहा जा सकेगा। लेकिन छात्रों को इसका लाभ जरूर मिलेगा। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों को बेहतर माहौल उपलब्ध करवाने के साथ ही इससे पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में भी कमी आने की उम्मीद है।
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि इससे भारतीय विश्वविद्यालयों का विदेशी शैक्षणिक संस्थानों के साथ तालमेल बढ़ेगा। साथ ही छात्रों को भी काफी लाभ होगा। उन्हें ज्यादा विकल्प मिल सकेंगे।विदेशी संस्थान के साथ मिलकर पाठ्यक्रम चलाने की शर्त यह होगी कि स्नातक पाठ्यक्रम में छात्र को कम से कम दो सेमेस्टर और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में न्यूनतम एक सेमेस्टर विदेशी संस्थान में रहकर पढ़ाई करनी होगी। पाठ्यक्रम पूरा होने पर छात्र को भारतीय संस्थान की ही उपाधि मिलेगी।
मगर उस पर विदेशी साझेदार का नाम लिखा जा सकेगा। तकनीकी रूप से इसे साझा डिग्री नहीं कहा जा सकेगा। लेकिन छात्रों को इसका लाभ जरूर मिलेगा। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों को बेहतर माहौल उपलब्ध करवाने के साथ ही इससे पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में भी कमी आने की उम्मीद है।
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