THE7.IN
मैंने जीवन संघर्ष को बहुत करीब से महसूस किया है। मेयर बनने के बाद मेरी पहली प्राथमिकता आम लोगों की जिंदगी में तब्दीली लाना और क्षेत्र की अधूरी विकास परियोजनाओं को पूरा करना है।
मेरा गांव चिखली पुणे के पश्चिमी हिस्से में स्थित है। छत्तीस साल पहले इसी गांव के एक गरीब किसान परिवार में मेरा जन्म हुआ था। परिवार की खराब आर्थिक स्थिति की वजह से मुझे बचपन में पढ़ाई करने के लिए अपने रिश्तेदारों के यहां रहकर पढ़ाई करनी पड़ी। अब इसे परिवार को मेरी जरूरत कहें या यों इधर-उधर रहकर एहसानों के बोझ का दबाव, दसवीं कक्षा पास करते ही मैंने पढ़ाई छोड़ दी और वापस अपने गांव चला गया।
खेती छोड़ ऑटो चलाया
गांव लौटकर मैंने खेती-किसानी में घरवालों का हाथ बंटाना शुरू कर दिया। लेकिन मेरी मदद का घर की आर्थिक सेहत पर कोई असर नहीं हुआ। परिवार की दरिद्रता जस की तस बनी रही। भले ही उस वक्त मैं बालिग नहीं हुआ था, पर मुझे लगा कि अब गांव छोड़कर शहर में कुछ काम करना चाहिए। वर्ष 1997 की बात है, जब पुणे और इसी से सटे पिंपरी चिंचवाड़ शहर में तेजी से कई तरह के बदलाव हो रहे थे। अनेक गांवों की पहचान शहर की चमक-धमक में समाती जा रही थी। घरवालों से सलाह लेकर मैंने तय किया कि मैं शहर में ऑटोरिक्शा चलाऊंगा।
जब शहर में ऑटो पर रोक लगा दी गई
उस वक्त घरवालों के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे मेरे लिए ऑटोरिक्शा खरीद सकें। फिर भी किसी तरह उन्होंने एक सिक्स सीटर ऑटोरिक्शा के लिए रुपयों का इंतजाम कर लिया। मैंने अगले छह वर्षों तक शहर में ऑटोरिक्शा चलाया। बाद में सरकारी आदेश के तहत शहर में सिक्स सीटर ऑटोरिक्शा का संचालन बंद कर दिया। अचानक मैं बेरोजगार हो गया। मैं शहर में कोई दूसरा काम करने की स्थिति में नहीं था। नतीजतन एक बार फिर मेरी वापसी खेतों की ओर हो गई। 2004 में मेरी शादी हो गई।
नेताओं के व्यवहार से क्षुब्ध हुआ
अगले कुछ समय तक मैंने एक प्राइवेट कंपनी की गाड़ियां चलाईं। इस दौरान अपने गांव-समाज में मेरी ठीक-ठाक पहचान बन गई। मैंने बचपन से हमेशा यही देखा है कि गांव के सरपंच या शहरी निकाय का सदस्य बनते ही लोग खुद को प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री से कम नहीं समझते हैं। किसी छोटे से काम के लिए इनके पास कई बार जाना पड़ता है। ऐसे नेताओं के व्यवहार ने ही मुझे राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया। अपने समाज में मेरी पहचान थी ही, अतः 2006 में एक नेता के संपर्क में आते ही मैंने राजनीति में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी।
मेयर की दौड़ में पहले भी था
2012 में एक क्षेत्रीय पार्टी के टिकट पर मुझे शहरी प्रशासन का हिस्सा बनने का मौका मिल गया। राजनीति में मेरी सक्रियता देख लोगों ने मुझसे विधायकी में हाथ आजमाने की सलाह दी। लेकिन मैंने खुद विधायकी का चुनाव न लड़कर अपने एक मित्र की सहायता की, जिन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता भी। बाद में मैंने पार्टी बदल ली। पिछले साल फरवरी में संपन्न हुए नगर निगम चुनावों में मुझे दोबारा पार्षद चुना गया। मैं उस वक्त भी अपनी पार्टी की ओर से शहर का महापौर बनने की दौड़ में शामिल था। पार्टी में हुए अनेक बदलावों के बाद आखिरकार हाल ही में मुझे अन्य पार्षदों ने शहर का मुखिया चुन लिया।
मेरा गांव चिखली पुणे के पश्चिमी हिस्से में स्थित है। छत्तीस साल पहले इसी गांव के एक गरीब किसान परिवार में मेरा जन्म हुआ था। परिवार की खराब आर्थिक स्थिति की वजह से मुझे बचपन में पढ़ाई करने के लिए अपने रिश्तेदारों के यहां रहकर पढ़ाई करनी पड़ी। अब इसे परिवार को मेरी जरूरत कहें या यों इधर-उधर रहकर एहसानों के बोझ का दबाव, दसवीं कक्षा पास करते ही मैंने पढ़ाई छोड़ दी और वापस अपने गांव चला गया।
खेती छोड़ ऑटो चलाया
गांव लौटकर मैंने खेती-किसानी में घरवालों का हाथ बंटाना शुरू कर दिया। लेकिन मेरी मदद का घर की आर्थिक सेहत पर कोई असर नहीं हुआ। परिवार की दरिद्रता जस की तस बनी रही। भले ही उस वक्त मैं बालिग नहीं हुआ था, पर मुझे लगा कि अब गांव छोड़कर शहर में कुछ काम करना चाहिए। वर्ष 1997 की बात है, जब पुणे और इसी से सटे पिंपरी चिंचवाड़ शहर में तेजी से कई तरह के बदलाव हो रहे थे। अनेक गांवों की पहचान शहर की चमक-धमक में समाती जा रही थी। घरवालों से सलाह लेकर मैंने तय किया कि मैं शहर में ऑटोरिक्शा चलाऊंगा।
जब शहर में ऑटो पर रोक लगा दी गई
उस वक्त घरवालों के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे मेरे लिए ऑटोरिक्शा खरीद सकें। फिर भी किसी तरह उन्होंने एक सिक्स सीटर ऑटोरिक्शा के लिए रुपयों का इंतजाम कर लिया। मैंने अगले छह वर्षों तक शहर में ऑटोरिक्शा चलाया। बाद में सरकारी आदेश के तहत शहर में सिक्स सीटर ऑटोरिक्शा का संचालन बंद कर दिया। अचानक मैं बेरोजगार हो गया। मैं शहर में कोई दूसरा काम करने की स्थिति में नहीं था। नतीजतन एक बार फिर मेरी वापसी खेतों की ओर हो गई। 2004 में मेरी शादी हो गई।
नेताओं के व्यवहार से क्षुब्ध हुआ
अगले कुछ समय तक मैंने एक प्राइवेट कंपनी की गाड़ियां चलाईं। इस दौरान अपने गांव-समाज में मेरी ठीक-ठाक पहचान बन गई। मैंने बचपन से हमेशा यही देखा है कि गांव के सरपंच या शहरी निकाय का सदस्य बनते ही लोग खुद को प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री से कम नहीं समझते हैं। किसी छोटे से काम के लिए इनके पास कई बार जाना पड़ता है। ऐसे नेताओं के व्यवहार ने ही मुझे राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया। अपने समाज में मेरी पहचान थी ही, अतः 2006 में एक नेता के संपर्क में आते ही मैंने राजनीति में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी।
मेयर की दौड़ में पहले भी था

2012 में एक क्षेत्रीय पार्टी के टिकट पर मुझे शहरी प्रशासन का हिस्सा बनने का मौका मिल गया। राजनीति में मेरी सक्रियता देख लोगों ने मुझसे विधायकी में हाथ आजमाने की सलाह दी। लेकिन मैंने खुद विधायकी का चुनाव न लड़कर अपने एक मित्र की सहायता की, जिन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता भी। बाद में मैंने पार्टी बदल ली। पिछले साल फरवरी में संपन्न हुए नगर निगम चुनावों में मुझे दोबारा पार्षद चुना गया। मैं उस वक्त भी अपनी पार्टी की ओर से शहर का महापौर बनने की दौड़ में शामिल था। पार्टी में हुए अनेक बदलावों के बाद आखिरकार हाल ही में मुझे अन्य पार्षदों ने शहर का मुखिया चुन लिया।
No comments:
Post a Comment