वक्त का तकाजा है तूफां से जूझो, आखिर कब तक चलोगे किनारे-किनारे। इस प्रकार के विचार रखने वाले राजेंद्र पैंसिया ने न केवल इन्हें अपनाया। बल्कि इसके आधार पर सफलता का वह मुकाम हासिल किया, जो हर किसी के लिए प्रेरणा है। पैंसिया हर बार अपना लक्ष्य तय करते उसके लिए आगे बढ़ जाते। इसी का परिणाम है कि 10 साल पहले तृतीय श्रेणी शिक्षक से अपना कॅरिअर शुरू करने वाले पैंसिया का चयन आईएएस में हो गया।
श्रीगंगानगर जिले की श्रीकरणपुर तहसील के रहने वाले राजेंद्र पैंसिया ने आईएएस-2014 में 345 वीं रैंक हासिल की है। वर्तमान में वे अंबेडकर पीठ में सचिव के पद पर कार्यरत है। वर्ष 2005 में उनका थर्ड ग्रेड टीचर के पद पर और फिर बीडीओ में चयन हुआ था। पैंसिया यहीं नहीं रुके और अगले लक्ष्य आरएएस बनने में जुट गए।
उनकी मेहनत और संघर्ष का ही परिणाम रहा कि उन्होंने वर्ष 2011 में आरएएस परीक्षा में आठवीं रैंक हासिल की। फिर लगातार आईएएस की तैयारी करते रहे। 5वें प्रयास में मेहनत रंग लाई और आज वे आईएएस बन गए। उनके पिता अशरफी चंद बीएसएनएल में कार्यरत है। राजेंद्र ने सफलता का श्रेय अपने परिवार, आईएएस जितेंद्र सोनी, डॉ. इंद्रेश गोयल, आरएएस दीपक नंदी और प्रदीप बोरड़ को दिया है।
श्रीगंगानगर जिले की श्रीकरणपुर तहसील के रहने वाले राजेंद्र पैंसिया ने आईएएस-2014 में 345 वीं रैंक हासिल की है। वर्तमान में वे अंबेडकर पीठ में सचिव के पद पर कार्यरत है। वर्ष 2005 में उनका थर्ड ग्रेड टीचर के पद पर और फिर बीडीओ में चयन हुआ था। पैंसिया यहीं नहीं रुके और अगले लक्ष्य आरएएस बनने में जुट गए।
उनकी मेहनत और संघर्ष का ही परिणाम रहा कि उन्होंने वर्ष 2011 में आरएएस परीक्षा में आठवीं रैंक हासिल की। फिर लगातार आईएएस की तैयारी करते रहे। 5वें प्रयास में मेहनत रंग लाई और आज वे आईएएस बन गए। उनके पिता अशरफी चंद बीएसएनएल में कार्यरत है। राजेंद्र ने सफलता का श्रेय अपने परिवार, आईएएस जितेंद्र सोनी, डॉ. इंद्रेश गोयल, आरएएस दीपक नंदी और प्रदीप बोरड़ को दिया है।
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