आईआईटीयंस बनने का ख्बााब लिए 15 साल का लड़का संवाई माधोपुर से कोटा आया, लेकिन इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा पास करना तो दूर कोचिंग का एंट्रेंस एग्जाम तक क्वालिफाई नहीं कर सका। बावजूद इसके उसने हार नहीं मानी और गणित पढ़े बिना न सिर्फ आईआईटी में प्रवेश लिया, बल्कि अब
कोटा के विपिन गर्ग ने सिविल सर्विसेज एग्जाम में बीसवीं रैंक हासिल की है। यह सफलता उन्हें तीसरे प्रयास में मिली। इससे पहले दो बार मेन्स क्वालिफाई करने के बावजूद वह इंटरव्यू पास नहीं कर सके थे। असफलताओं से उनका शुरुआत से नाता रहा है, लेकिन हर बार उन्होंने इसे एक अवसर की तरह लिया और आज देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा टॉप करके दिखाई। विपिन और उनके पिता सहायक निदेशक कॉलेज शिक्षा डॉ. एसएन गर्ग ने राजस्थान पत्रिका के साथ साझा की सफलता की कहानीः-
संवाई माधोपुर के आदर्श विद्या मंदिर से दसवीं कक्षा पास करने के बाद डॉ. गर्ग वर्ष 2005 में अपने बेटे को लेकर कोटा आ गए। बेटा आईआईटीयंस बनने का ख्वाब देख रहा था इसलिए उसे कोचिंग में पढ़ाने के लिए उन्होंने प्रवेश परीक्षा दिलवाई, लेकिन विपिन उसे पास नहीं कर सके। ग्यारहवीं में दाखिला कराया, लेकिन स्कूल टीचर्स ने गणित विषय देने से इन्कार कर दिया। ख्वाब टूटता देख बेटे की तो छोडि़ए शिक्षक पिता तक अवसाद से घिर गए।
डॉ. गर्ग बताते हैं कि ''हालात यह थे कि मैं कई-कई घंटे तलवंडी सड़कों पर घूमता रहता।'' बहरहाल असफलता के इस किस्से को पीछे छोड़ विपिन जूलॉजी और बॉटनी पढऩे में मशरूफ हो गए। हालांकि उन्होंने घर पर गणित की पढ़ाई करना नहीं छोड़ा। बारहवीं की परीक्षा के साथ ही वपिन ने मेडिकल एंट्रेस एग्जाम दिया और पहली बार में ही क्वालिफाई भी कर लिया, लेकिन उनकी उम्र 17 साल से कम होने के कारण मेडिकल कॉलेज में प्रवेश नहीं मिल सका। डॉ. गर्ग ने एमसीआई के इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती भी दी, लेकिन कोई सफलता हासिल नहीं हुई।
ऑटो चालक से मिली प्रेरणा
डॉ. गर्ग बताते हैं कि एक दिन विपिन घर से ट्यूशन पढऩे निकला, लेकिन उसकी जेब में रखा सौ का नोट ऑटो में ही गिर गया। ऑटो चालक पहले तो बिना किराया लिए चला गया, लेकिन थोड़ी देर में वापस लौटा और उसे पैसे वापस करने लगा। विपिन को लगा कि मेहनत बेकार नहीं जाती और उसका नतीजा जरूर मिलता है। ऑटो चालक से मिली प्रेरणा ने इसके बाद उनकी जिंदगी ही बदल दी। वर्ष 2009 में विपिन ने राजस्थान मेडिकल प्रवेश परीक्षा में दूसरा, एम्स में 17 वां और एआईपीएमटी में 22वां स्थान हासिल किया। इतना ही नहीं गणित विषय के बिना ही उन्होंने आईआईटी प्रवेश परीक्षा भी पास की।
नहीं देखा पीछे मुड़कर
विपिन बताते हैं कि आईआईटी में 2358 वीं रैंक आने के बावजूद उन्होंने इंजीनियर बनने को प्राथमिकता दी। आईआईटी दिल्ली में दो महीने पढ़ाई भी की, लेकिन उनकी बड़ी बहन डॉ. कल्पना अग्रवाल ने उन्हें चिकित्सक बनने के लिए प्रेरित किया और फिर एम्स में प्रवेश दिला दिया। एमबीबीएस करने के बाद विपिन ने आईएस बनने की ठान ली, लेकिन बिना कोचिंग की मदद के। दो बार प्री और मेन्स क्वालिफाई करने के बावजूद वह इंटरव्यू पास नहीं कर पाए।
बार-बार मिली असफलताओं के बावजूद विपिन का हौसला नहीं टूटा और उन्होंने तीसरी बार फिर परीक्षा दी और मंगलवार को आए नतीजे चौंकाने वाले रहे। डॉ. गर्ग बताते हैं कि हम पूरी रात यकीन नहीं कर पाए कि विपिन ने पूरे देश में बीसवां स्थान हासिल किया है। इसलिए किसी को इस बारे में बताया तक नहीं। राजकीय महाविद्यालय में पूरे दिन डॉ. गर्ग को बधाई देने वालों का तांता लगा रहा।
No comments:
Post a Comment