झुग्गी बस्‍ती से सिविल सर्विस पास करने का संघर्ष भरा सफर, सिविल सर्विस 420वीं रैंक हासिल की-अनमोल उम्मुल - Government Jobs, Sarkari Naukri, Sarkari Result, Admissions, Rojgar, Exams Alerts.

RECENT

GOVT JOBS | सरकारी नौकरी

Friday, October 5, 2018

झुग्गी बस्‍ती से सिविल सर्विस पास करने का संघर्ष भरा सफर, सिविल सर्विस 420वीं रैंक हासिल की-अनमोल उम्मुल



उम्मुल खेर जैसी लड़की को जितनी बार सलाम किया जाए, उतना ही कम है. ऐसी बहादुर लड़की समाज में बहुत कम मिलती है. एक ऐसी लड़की जो विकलांग पैदा हुई और इस विकलांगता को अपनी ताकत बनाते हुए सफलता की सीढ़ियां चढ़ती चली ग

ई. एनडीटीवी से बात करते हुए उम्मुल ने अपने संघर्ष की कहानी बताई. उम्मुल का जन्म राजस्थान के पाली मारवाड़ में हुआ. उम्मुल अजैले बोन डिसऑर्डर बीमारी के साथ पैदा हुई थी, एक ऐसा बॉन डिसऑर्डर जो बच्‍चे की हड्डियां कमज़ोर कर देता है. हड्डियां कमज़ोर हो जाने की वजह से जब बच्चा गिर जाता है तो फ्रैक्चर होने की ज्यादा संभावना रहती है. इस वजह से 28 साल की उम्र में उम्मुल को 15 से भी ज्यादा बार फ्रैक्चर का सामना करना पड़ा ह
जब मां का हो गया देहांत
उम्मुल जब स्कूल में थी तब उनकी मां का देहांत हो गया. उम्मुल की सौतेली मां के साथ उम्मुल का रिश्ता अच्छा नहीं था. घर में और भी कई समस्याएं थीं. उम्मुल के पापा के पास कोई नौकरी न होने की वजह से घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. उम्मुल की पढ़ाई को लेकर घर में रोज़ झगड़ा हुआ करता था. अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए उम्मुल अपने घर से अलग हो गई तब वो नवीं क्लास में थी. त्रिलोकपुरी में एक छोटा सा कमरा किराया पर लिया. एक नवीं क्लास की लड़की को त्रिलोकपुरी इलाके में अकेले किराए पर रहना आसान नहीं था. डर का माहौल था. उम्मुल को बहुत समस्या का सामना करना पड़ा. उम्मुल रोज आठ-आठ घंटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी
बचपन निजामुद्दीन की झुग्‍गी में बीता


पहले दिल्‍ली में निजामुद्दीन के पास झुग्गियां हुआ करती थी. उसी झुग्‍गी इलाके में उम्मुल का बचपन बीता. उम्मुल के पापा सड़क के फुटपाथ पर मूंगफली बेचा करते थे. 2001 में झुग्गियां टूट गईं, फिर उम्मुल और उनका परिवार त्रिलोकपुरी इलाके में चले गए. त्रिलोकपुरी में किराये के मकान में रहे. उस वक्त उम्मुल सातवीं कक्षा की छात्रा थी. घर में पैसा नहीं हुआ करता था. उम्मुल के परिवार के लोग नहीं चाहते थे कि उम्मुल आगे पढ़ाई करे लेकिन उम्मुल अपना पढ़ाई जारी रखना चाहती थी. इस वजह से अपना ख़र्चा उठाने के लिए उम्मुल ने आसपास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. एक बच्चे को पढ़ाने से 50 से 60 रुपया मिलता था |
शुरुआत में विकलांग बच्चों की स्कूल में हुई पढ़ाई
पांचवीं क्लास तक दिल्ली के आईटीओ में विकलांग बच्चों की स्कूल में पढ़ाई की. फिर आठवीं तक कड़कड़डूमा के अमर ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट में पढाई की. यहां मुक्त में पढ़ाई होती थी. आठवीं क्लास में उम्मुल स्कूल की टॉपर थी फिर स्‍कॉलरशिप के जरिये दाख़िला एक प्राइवेट स्कूल में हुआ. यहां उम्मुल ने 12वीं तक पढ़ाई की. दसवीं में उम्मुल के 91 प्रतिशत मार्क्‍स थे. 12वीं क्लास में उम्मुल के 90 प्रतिशत मार्क्‍स थे. तब भी उम्मुल अकेले रहती थी, ट्यूशन पढ़ाती थी. 12वीं के बाद उम्मुल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज में साइकोलॉजी से ग्रेजुएशन किया. उम्मुल की संघर्ष की कहानी धीरे धीरे सबको पता चली
गार्गी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया
उम्मुल जब गार्गी कॉलेज में थी तब अलग-अलग देशों में दिव्यांग लोगों के कार्यक्रम में भारत का प्रतिनिधित्व किया. 2011 में उम्मुल सबसे पहले ऐसे कार्यक्रम के तहत दक्षिण कोरिया गई. दिल्ली यूनिवर्सिटी में जब उम्मुल पढ़ाई करती थी तब भी बहुत सारे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी. उम्मुल तीन बजे से लेकर रात को ग्यारह बजे तक ट्यूशन पढ़ाती थी. अगर उम्मुल ट्यूशन नहीं पढ़ाती तो घर का किराया और खाने-पीने का ख़र्चा नहीं निकाल पाती. ग्रेजुएशन के बाद उम्मुल को साइकोलॉजी विषय छोड़ना पड़ा. दरअसल साइकॉलॉजी में इंटर्नशिप होती थी. उम्मुल अगर इंटरशिप करती तो ट्यूशन नहीं पढ़ा पाती. फिर उम्मुल का जेएनयू में मास्टर ऑफ़ आर्ट्स के लिए एडमिशन हुआ. उम्मुल ने साइकोलॉजी की जगह इंटरनेशनल रिलेशंस चुना

जेएनयू में उम्मुल को हॉस्टल मिल गया. जेएनयू के हॉस्टल का कम चार्ज था अब उम्मुल को ज्यादा ट्यूशन पढ़ाने की जरुरत नहीं पड़ी. अपने एमए पूरा करने के बाद उम्मुल जेएनयू में एमफिल में दाख़िला ली. 2014 में उम्मुल का जापान के इंटरनेशनल लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए चयन हुआ. 18 साल के इतिहास में सिर्फ तीन भारतीय इस प्रोग्राम के लिए सेलेक्ट हो पाए थे और उम्मुल ऐसी चौथी भारतीय थीं जो इस प्रोग्राम के लिए सेलेक्ट हुई थीं. फिर उम्मुल एक साल छुट्टी लेकर इस प्रोग्राम के लिए जापान चली गई. इस प्रोग्राम के जरिये उम्मुल दिव्‍यांग लोगों को यह सिखाती थी कि कैसे एक इज्‍जत की ज़िंदगी जी जाए. एक साल ट्रेनिंग प्रोग्राम के बाद उम्मुल भारत वापस आई और अपनी एमफिल की पढ़ाई पूरी की
एमफिल पूरी करने के साथ-साथ उम्मुल ने जेआरफ भी क्लियर कर ली. अब उम्मुल को पैसे मिलने लगे. अब उम्मुल के पास पैसे की समस्या लगभग खत्म हो गई. एमफिल पूरा करने के बाद उम्मुल ने जेएनयू में पीएचडी में दाख़िला लिया. जनवरी 2016 में उम्मुल ने आईएएस के लिए तैयारी शुरू की और अपने पहले प्रयास में सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर. उम्मुल ने 420वीं रैंक हासिल की है
अपना माता-पिता को हर सुविधाएँ देना चाहती हैं उम्मुल
उम्मुल का कहना है कि उनके परिवार के लोगों ने उनके साथ जो भी किया वह उनकी गलती थी. उम्मुल का कहना है कि शायद उनके पिता ने लड़कियों को ज्यादा पढ़ते हुए नहीं देखा था इसीलिए वह उम्मुल को नहीं पढ़ाना चाहते थे. उम्मुल का कहना है कि उसने अपने परिवार को माफ़ कर दिया है. अब परिवार के साथ उसके अच्‍छे संबंध हैं. अब उम्मुल के माता-पिता उनके बड़े भाई के साथ राजस्थान में रह रहे हैं. उम्मुल का कहना है कि वह अपने माता-पिता का बहुत सम्मान करती है और अब वह उन्हें हर तरह का आराम देना चाहती है जो‍कि उनका हक है |

No comments:

Post a Comment