खुद ट्रेनिंग नहीं ली, पर दूसरों को ट्रेनिंग दे रहे हैं। जी हां, राज्य के सरकारी प्रशिक्षण महाविद्यालयों का यही हाल है। 2012 में खुले प्रशिक्षण महाविद्यालयों में छह साल बाद भी अभी व्याख्याता नियुक्ति की प्रक्रिया ही चल रही है। एक साल पहले इनमें अतिथि व्याख्याता रखे भी गए तो इनमें भी सभी प्रशिक्षित नहीं हैं।
राज्य भर में 66 सरकारी प्रशिक्षण महाविद्यालय हैं। इनमें छह में बीएड और 60 में डीएलएड कोर्स चलता है। एनसीटीई मानक के अनुसार 50 प्रशिक्षुओं पर आठ व्याख्याता होने चाहिए। लेकिन इनमें से किसी में भी मानक के अनुसार व्याख्याता नहीं हैं। 2017 में छह सौ अतिथि शिक्षक व्याख्याता के रूप में रखे गए, लेकिन इनमें कई अनट्रेंड ही हैं, यानी ज्यादातर के पास मानक के अनुसार डिग्री नहीं हैं। ज्यादातर प्रशिक्षण महाविद्यालयों में व्याख्याता की कमी है। सभी महाविद्यालयों में 2006 और 2007 के अनट्रेंड शिक्षक ही अब तक पढ़ा रहे हैं। ऐसे में 2011 में पास अनट्रेंड टीईटी और एसटीईटी अभ्यर्थियों को प्रशिक्षण भी अप्रशिक्षित शिक्षकों के जरिये ही मिला। इन अभ्यर्थियों को डीएलएड कोर्स की ट्रेनिंग तीन सत्रों में कराई गई थी। .
2012 में खुले प्रशिक्षण महाविद्यालयों में छह साल बाद भी व्याख्याता नियुक्ति की प्रक्रिया ही चल रही है।
डायट के तहत कॉलेजों में प्रशिक्षण
बिहार में डायट के तहत प्रशिक्षण महाविद्यालय खोला गया। ये हर जिले में हैं। 1992 के बाद इन्हें बंद कर दिया गया। 2009 में आरटीई के तहत स्कूलों में ट्रेंड शिक्षक होना अनिवार्य किया गया। बिहार सरकार ने 2012 में फिर सारे टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेजों को खोला, लेकिन व्याख्याता की नियुक्ति नहीं हुई।
राज्य में 2016 में पहली बार सरकारी प्रशिक्षण महाविद्यालय के 1060 व्याख्याताओं के लिए वैकेंसी निकाली गई। इसमें 530 पद सीधी भर्ती और 530 पद सरकारी स्कूल के ऐसे शिक्षक के लिए थे जिन्हें तीन साल तक पढ़ाने का अनुभव हो। साथ ही एमए और एमएड में 55 फीसदी के साथ उत्तीर्णता अनिवार्य थी। आठ हजार लोगों ने आवेदन भरा। फिर दो साल तक इंतजार किया। अब 25 व 27 अगस्त 2018 को इसकी लिखित परीक्षा ली गई। नियुक्ति में कम से कम तीन से चार महीने लग जाएंगे।
विनोद कुमार (निदेशक, एससीईआरटी) ने कहा- नियुक्ति से संबंधित कई मामले हाईकोर्ट में लंबित हैं। इस वजह से देरी हुई। नियुक्तियां दिसंबर में हो जानी थीं। हाईकोर्ट के दिशानिर्देश के अनुसार पहली बार प्रशिक्षण महाविद्यालयों में व्याख्याता की नियुक्ति होगी।
राज्य भर में 66 सरकारी प्रशिक्षण महाविद्यालय हैं। इनमें छह में बीएड और 60 में डीएलएड कोर्स चलता है। एनसीटीई मानक के अनुसार 50 प्रशिक्षुओं पर आठ व्याख्याता होने चाहिए। लेकिन इनमें से किसी में भी मानक के अनुसार व्याख्याता नहीं हैं। 2017 में छह सौ अतिथि शिक्षक व्याख्याता के रूप में रखे गए, लेकिन इनमें कई अनट्रेंड ही हैं, यानी ज्यादातर के पास मानक के अनुसार डिग्री नहीं हैं। ज्यादातर प्रशिक्षण महाविद्यालयों में व्याख्याता की कमी है। सभी महाविद्यालयों में 2006 और 2007 के अनट्रेंड शिक्षक ही अब तक पढ़ा रहे हैं। ऐसे में 2011 में पास अनट्रेंड टीईटी और एसटीईटी अभ्यर्थियों को प्रशिक्षण भी अप्रशिक्षित शिक्षकों के जरिये ही मिला। इन अभ्यर्थियों को डीएलएड कोर्स की ट्रेनिंग तीन सत्रों में कराई गई थी। .
2012 में खुले प्रशिक्षण महाविद्यालयों में छह साल बाद भी व्याख्याता नियुक्ति की प्रक्रिया ही चल रही है।
डायट के तहत कॉलेजों में प्रशिक्षण
बिहार में डायट के तहत प्रशिक्षण महाविद्यालय खोला गया। ये हर जिले में हैं। 1992 के बाद इन्हें बंद कर दिया गया। 2009 में आरटीई के तहत स्कूलों में ट्रेंड शिक्षक होना अनिवार्य किया गया। बिहार सरकार ने 2012 में फिर सारे टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेजों को खोला, लेकिन व्याख्याता की नियुक्ति नहीं हुई।
राज्य में 2016 में पहली बार सरकारी प्रशिक्षण महाविद्यालय के 1060 व्याख्याताओं के लिए वैकेंसी निकाली गई। इसमें 530 पद सीधी भर्ती और 530 पद सरकारी स्कूल के ऐसे शिक्षक के लिए थे जिन्हें तीन साल तक पढ़ाने का अनुभव हो। साथ ही एमए और एमएड में 55 फीसदी के साथ उत्तीर्णता अनिवार्य थी। आठ हजार लोगों ने आवेदन भरा। फिर दो साल तक इंतजार किया। अब 25 व 27 अगस्त 2018 को इसकी लिखित परीक्षा ली गई। नियुक्ति में कम से कम तीन से चार महीने लग जाएंगे।
विनोद कुमार (निदेशक, एससीईआरटी) ने कहा- नियुक्ति से संबंधित कई मामले हाईकोर्ट में लंबित हैं। इस वजह से देरी हुई। नियुक्तियां दिसंबर में हो जानी थीं। हाईकोर्ट के दिशानिर्देश के अनुसार पहली बार प्रशिक्षण महाविद्यालयों में व्याख्याता की नियुक्ति होगी।
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