इंडिया टुडे वुमन समिट' में शामिल हुईं एग्रीकल्चर साइंटिस्ट सरोज चौधरी ने बताया कि एक गड़रिया परिवार में जन्म लेने के बाद उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ा |
कृषि ज्ञान केंद्र की वैज्ञानिक सरोज को बचपन में स्कूल जाने का मौका नहीं मिला था. उन्होंने बताया, 'मेरे माता-पिता किसान थे और अशिक्षित थे. हम सात भाई-बहन थे. भाइयों को स्कूल छोड़कर आना पड़ता था और घर पर उनका ध्यान रखना पड़ता था.'
उन्होंने बताया, 'गड़रिया परिवार में जन्म लेने के बाद 5 बहनों और 2 भाइयों के परिवार में उनके सामने बड़ी चुनौती थी. भाइयों को स्कूल छोड़ने के अलावा बकरियां भी चरानी पड़ती थी. मुझे पढ़ना-लिखना कुछ नहीं आता था लेकिन भाई को स्कूल छोड़ने जाती थी और क्लास के बाहर बैठ के सुनती थी. एक दिन ऐसा हुआ कि बच्चे काउंटिंग कर रहे थे, एक बच्चा अटक गया, जहां पर वह बच्चा रुका, मैंने वहीं से बोलना शुरू कर दिया. टीचर्स ने मेरे पैरेंट्स को मोटिवेट किया और फिर तभी मेरी जिंदगी में नई रोशनी आई.'
उसके बाद सरोज ने आगे की पढ़ाई की और घर के काम के साथ-साथ अपने सपनों को पूरा किया |
उन्होंने कहा, एक औरत को भगवान ने जितना कॉन्फिडेंट और मजबूत बनाया है, मुझे नहीं लगता है कि पुरुष इतने मजबूत होते हैं |
सरोज ने कहा कि जब उनके भाई स्कूल जाते थे और वो स्कूल नहीं जा पाती थीं तो भी उन्हें कभी लड़की होने की वजह से असहाय महसूस नहीं हुआ. उन्होंने कहा, 'बेटियां कभी बेटों से कम नहीं होती इसीलिए मैंने एक बेटी को गोद लिया है. बेटों से ज्यादा बेटियां नाम रोशन करती हैं. बेटा एक घर उजागर करता है लेकिन बेटियां दो-दो घर उजागर करती हैं.'
कृषि ज्ञान केंद्र की वैज्ञानिक सरोज को बचपन में स्कूल जाने का मौका नहीं मिला था. उन्होंने बताया, 'मेरे माता-पिता किसान थे और अशिक्षित थे. हम सात भाई-बहन थे. भाइयों को स्कूल छोड़कर आना पड़ता था और घर पर उनका ध्यान रखना पड़ता था.'
उन्होंने बताया, 'गड़रिया परिवार में जन्म लेने के बाद 5 बहनों और 2 भाइयों के परिवार में उनके सामने बड़ी चुनौती थी. भाइयों को स्कूल छोड़ने के अलावा बकरियां भी चरानी पड़ती थी. मुझे पढ़ना-लिखना कुछ नहीं आता था लेकिन भाई को स्कूल छोड़ने जाती थी और क्लास के बाहर बैठ के सुनती थी. एक दिन ऐसा हुआ कि बच्चे काउंटिंग कर रहे थे, एक बच्चा अटक गया, जहां पर वह बच्चा रुका, मैंने वहीं से बोलना शुरू कर दिया. टीचर्स ने मेरे पैरेंट्स को मोटिवेट किया और फिर तभी मेरी जिंदगी में नई रोशनी आई.'
उसके बाद सरोज ने आगे की पढ़ाई की और घर के काम के साथ-साथ अपने सपनों को पूरा किया |
उन्होंने कहा, एक औरत को भगवान ने जितना कॉन्फिडेंट और मजबूत बनाया है, मुझे नहीं लगता है कि पुरुष इतने मजबूत होते हैं |
सरोज ने कहा कि जब उनके भाई स्कूल जाते थे और वो स्कूल नहीं जा पाती थीं तो भी उन्हें कभी लड़की होने की वजह से असहाय महसूस नहीं हुआ. उन्होंने कहा, 'बेटियां कभी बेटों से कम नहीं होती इसीलिए मैंने एक बेटी को गोद लिया है. बेटों से ज्यादा बेटियां नाम रोशन करती हैं. बेटा एक घर उजागर करता है लेकिन बेटियां दो-दो घर उजागर करती हैं.'
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